और सूख गयी आँखे जब, तो जिंदगी रुलाए क्यूँ ?
पूछते हो की तेरी कोई चाहनेवाली क्यूँ नहीं
अँधा हुआ हूँ चाहत में, चहेती नज़र आए क्यूँ?
सपने ऐसे देखे हीं क्यूँ, जों सुबह हुए- भूल गये
और रात भर जों जगाए, सपनें उन्हें बुलाएं क्यूँ ?
कहते हो की दर्द भी नहीं है सीने में, ना पाने का
नशा-ए-दर्द ही बने दवा, तो दर्द नज़र आए क्यूँ?
थी एक धड़कन दिल की, थम सी गयी, खो बैठा,
जलाकर आग मिट भी गयी, बुझाने आंसूं बहाए क्यूँ?
थी एक धड़कन दिल की, थम सी गयी, खो बैठा,
जलाकर आग मिट भी गयी, बुझाने आंसूं बहाए क्यूँ?
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मिलिंद
(मंदार और गायत्री के मार्गदर्शन के लिए उन्हें धन्यवाद!)
baap re....gadre...i have no words to praise ur poem... last line is the best...padhte padhte ankh mei aasu aa gaye.... :)..keep writing
ReplyDeleteमनू, फुल्ल-टू सुटला आहेस! ही नज़्म खूप आवडली मला. विशेषत: प्रेमात आंधळं झाल्यामुळे ’या माम् चिन्तयति सततम्’ अशी तीच न दिसणं आणि "जलाकर आग.." या कल्पना भारीयेत. स्वप्न आणि दु:ख : कल्पना नवीन नाहीत, पण या साच्यात चांगल्या बसवल्यायस.
ReplyDeleteव्याकरण इषिकाच नीट सुधारून देऊ शकेल, पण ’आए’, ’ऐसे’, ’सपने’ अशी ती रूपं असावीत - अनुस्वार उगाच शिरजोर झालेत असा माझा कयास आहे.
GADARRRR.... looks like ur in love... hnnmmnm
ReplyDeleteaweseome poem....
TU AUR KYUN NAHI LIKHTA....
its tooo goood....
waiting for some more....
I would [love to write like this] if I could. But I can't. So I won't.
ReplyDeleteBut you should.
kya baat hai bhai....sahi hai....
ReplyDeletegood one..
ReplyDeletebhot potential hai aapke andar sirji..
keep writing..
"kadak" is the word! keep writing sir.
ReplyDeletenice one...
ReplyDeletei liked it....
अरे मिलिंद, खरंच पेटलायस ! एकदम भारी !!
ReplyDeletegreat poem... makes a lot of sense ;)
ReplyDeleteIt's beautiful, though I couldn't get some part of it. But still :P.
ReplyDeleteAwesome stuff. gadre, tune gadar machaya hain!! Really liked it!!! :D :D
ReplyDeletekadak..itni achhi hindi hai teri :D
ReplyDeletebada artist chhupa hai tere andar..aur bahar nikalo :)
thank you all! शुक्रिया!!
ReplyDeleteThis is very inspiring!
अब मतले का इंतजार है! :)
ReplyDeleteUttam !!!
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