और सूख गयी आँखे जब, तो जिंदगी रुलाए क्यूँ ?
पूछते हो की तेरी कोई चाहनेवाली क्यूँ नहीं
अँधा हुआ हूँ चाहत में, चहेती नज़र आए क्यूँ?
सपने ऐसे देखे हीं क्यूँ, जों सुबह हुए- भूल गये
और रात भर जों जगाए, सपनें उन्हें बुलाएं क्यूँ ?
कहते हो की दर्द भी नहीं है सीने में, ना पाने का
नशा-ए-दर्द ही बने दवा, तो दर्द नज़र आए क्यूँ?
थी एक धड़कन दिल की, थम सी गयी, खो बैठा,
जलाकर आग मिट भी गयी, बुझाने आंसूं बहाए क्यूँ?
थी एक धड़कन दिल की, थम सी गयी, खो बैठा,
जलाकर आग मिट भी गयी, बुझाने आंसूं बहाए क्यूँ?
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मिलिंद
(मंदार और गायत्री के मार्गदर्शन के लिए उन्हें धन्यवाद!)